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बिहार चुनाव; इस बार तेज प्रताप यादव बख्तियारपुर सीट से लड़ सकते हैं चुनाव

बिहार की पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सीट बख्तियारपुर पर इस बार हर किसी की नज़र है. कयास लगाए जा रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव इस बार यहां से विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं. मौजूदा वक्त में ये सीट भारतीय जनता पार्टी के पास है, अगर तेज प्रताप आते हैं तो मुकाबला कड़ा होगा. इससे पहले भी ये सीट कई बार राष्ट्रीय जनता दल के पास ही रही है, ऐसे में इस बार फिर कांटे की टक्कर की बात कही जा रही है. 


विधानसभा चुनावों के शुरुआत यानी 1951 में ही बनी इस सीट पर पहले दो दशक सिर्फ कांग्रेस का ही कब्जा रहा. उसके बाद एक बार कांग्रेस को हार मिली, लेकिन फिर वापसी करने के बाद 1990 तक कब्जा जमाए रखा. हालांकि, तब से अबतक कांग्रेस यहां जीत हासिल नहीं कर पाई है और राजद-भाजपा में ये सीट घूमती रही है. पिछली बार भाजपा के रणविजय सिंह ने इस सीट से बाजी मार ली थी.

क्या कहता है सामाजिक तानाबाना?


पटना जिले में पड़ने वाले बख्तियारपुर में पिछले चुनाव तक करीब ढाई लाख वोटर थे. इनमें 1.26 लाख पुरुष, 1.07 लाख महिलाएं वोटर हैं. इस क्षेत्र के अंदर खुसरूपुर, धानियावान और बख्तियारपुर जैसे ब्लॉक आते हैं, जहां ग्रामीण वोटरों का सबसे अधिक प्रभाव है. इस पूरे क्षेत्र में यादव वोटरों का दबदबा है, चाहे राजद हो या भाजपा हर किसी पार्टी की नज़र यादव वोटबैंक पर रहती है. यही कारण है कि तेज प्रताप यादव इस सीट पर नज़र जमाए हुए हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव में राजद-जदयू के साथ होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से बाजी मार ली थी. भाजपा के रणविजय सिंह यादव ने अपने प्रतिद्वंदी राजद के अनिरुद्ध कुमार को बड़े अंतर से मात दी थी. अनिरुद्ध इस सीट से पहले चुनाव जीत चुके हैं. पिछले चुनाव में रणविजय सिंह यादव को 61 हजार से अधिक और अनिरुद्ध को 53 हजार के करीब ही वोट मिल पाए थे. 

विधायक का रिपोर्ट कार्ड


अपने क्षेत्र में लल्लू मुखिया के नाम से मशहूर रणविजय सिंह यादव ने पिछली बार जीत हासिल कर हर किसी को हैरान किया. रणविजय सिंह यादव बख्तियापुर के ही टेकाबिघा गांव के रहने वाले हैं. पिछले चुनाव में भाजपा विनोद यादव का टिकट काटकर रणविजय को मौका दिया था, जिसके बाद काफी विवाद भी हुआ था. लेकिन उनकी जीत ने सबकुछ भूला दिया. रणविजय सिंह अपने क्षेत्र में अक्सर लोगों के कार्यक्रमों में शामिल होते रहते हैं, जिसके कारण स्थानीय विरोधियों ने उनका नाम ‘भोज वाले विधायक’ रखा है. 

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