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भगवान श्रीकृष्ण के 5249 वां जन्मोत्सव – कृष्ण जन्माष्टमी पूजन विशेष

वैदिक गणना के अनुसार ऐसी मान्यता है कि यह भगवान श्रीकृष्ण का 5249 वां जन्मोत्सव है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात के 12 बजे हुआ था, इसलिए हर साल भगवान का जन्मोत्सव रात के 12 बजे ही मनाया जाता है। इस साल भी पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त रात 12 बजे

जन्माष्टमी के दिन बड़ी तादाद में लोग व्रत रखते हैं और भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव की पूजा होने तक यानी रात्रि 12 बजे तक व्रत का पालन करते हैं। वैसे तो सभी मंदिरों में जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन कृष्ण मंदिरों की सजावट और पूजा देखते ही बनती है। इस दिन मंदिरों में विशेष झांकियां सजाई जाती हैं। भगवान कृष्ण को झूले में झुलाया जाता है और 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। चूंकि कृष्ण जी का जन्म मथुरा में हुआ, इसलिए वहां जन्माष्टमी पर सबसे ज्यादा रौनक रहती है।

सभी दृष्टि से कृष्ण पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है।

जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है।

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था।
पूजन विधि:-

उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।

अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें।

फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें :-
‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।’

अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्‍ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।

Credit : पंडित प्रवीण तिवारी

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