कौन हैं बेल्लारी के रेड्डी बंधु जिन्होंने भाजपा का कर्नाटक कैंपेन फंड किया है?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजों का दिन था. तय ही नहीं हो पा रहा था कि भाजपा जीत रही है कि कांग्रेस. जेडीएस पहले किंगमेकर बताई जा रही थी, लग रहा था कि वही किंग है. मामला फंसा हुआ था. सिद्धारमैया भी सीएम हो सकते थे और येदियुरप्पा भी. लेकिन इतना तय था कि भाजपा का प्रदर्शन ज़बरदस्त रहा. इसीलिए भाजपा के चुनाव अभियान के ‘शुभचिंतकों’ में से सबसे ताकतवर की बात लाज़मी हो जाती है. चुनाव में भाजपा की सात टिकटें ऐसी थीं, जो इन शुभचिंतकों के सुपुर्द थीं. ये थे रेड्डी बंधु, जिनपर लगे भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद भाजपा उनसे किनारा नहीं कर पाई क्योंकि भाजपा के ‘भामाशाह’ हैं. रेड्डी बंधु, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो बेल्लारी के बेताज बादशाह हैं. रेड्डी बंधु, जो कभी बमुश्किल साइकिल पर चल पाते थे और जो अब हेलिकॉप्टर से नीचे की बात नहीं करते. आज मौका है, तो बात होगी मायावी रेड्डी बंधुओं पर.

ये रेड्डी बंधु हैं कौन, और कितने हैं?

टोटल तीन भाई हैं. गली सोमशेखर रेड्डी, उनसे बड़े गली जनार्दन रेड्डी और सबसे बड़े गली करुणाकर रेड्डी. येदियुरप्पा की भाजपा सरकार में जनार्दन रेड्डी पर्यटन मंत्री रह चुके हैं, जी करुणाकर वित्त मंत्री रह चुके हैं और जी सोमशेखर ने सादी विधायकी की है (वैसे वो कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष रहे हैं). इन भाइयों के पापा कभी आंध्रप्रदेश पुलिस में कॉन्स्टेबल थे (बेल्लारी आंध्र से लगा हुआ है). तीनों का बचपन तंगी में बीता है. बड़े हुए, तो भाइयों ने एक चिटफंड कंपनी शुरू की. लेकिन वो ज़्यादा चली नहीं. इनकी जिस बरकत के चर्चे आज हैं, वो तब शुरू हुई जब इन्होंने लौह अयस्क (आयरन ओर) की खदानें शुरू कीं.

जी जनार्दन रेड्डी तीनों भाइयों में सबसे चर्चित हैं. ज़्यादातर लोगों ने इनका ही चेहरा ही देखा है.
जी जनार्दन रेड्डी तीनों भाइयों में सबसे चर्चित हैं. ज़्यादातर लोगों ने इनका ही चेहरा ही देखा है.

दुनिया का व्यापार और देश की राजनीति, दोनों ने साथ दिया

लेकिन एक खदान शुरू करने भर से कोई वहां नहीं पहुंच जाता जहां आज रेड्डी बंधु हैं. उनकी बरकत के पीछे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी है और घरेलु राजनीति भी. वो स्टील के कारोबार में तब उतरे जब चीन ने 2008 ओलंपिक के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू किया. इसके लिए चीन ने दुनियाभर से स्टील खरीदा. लौह अयस्क की मांग बढ़ गई और बेल्लारी का अयस्क बेशकीमती हो गया. राजनीति ने भी खूब साथ दिया.

बेल्लारी में सुषमा ने सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ा तो देसी-बाहरी का मुद्दा ज़ोरों से उठा था. (फोटोःरॉयटर्स)
बेल्लारी में सुषमा ने सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ा तो देसी-बाहरी का मुद्दा ज़ोरों से उठा था. (फोटोःरॉयटर्स)

सुषमा का आशीर्वाद जो भाइयों को खूब फला

रेड्डी बंधुओं के खनन कारोबार शुरू करने से तीन साल पहले, माने 1999 में सोनिया गांधी को संसद में भेजना तय हुआ. सोनिया पहली बार में सांसदी जीत जाएं, इसके लिए उनका पर्चा दो जगह भरा गया. पहला अमेठी से और दूसरा कर्नाटक में कांग्रेस के गढ़ बेल्लारी से. सोनिया को हराने के लिए भाजपा ने बेल्लारी से टिकट दिया सुषमा स्वराज को. सुषमा बेल्लारी आईं और तभी वो तस्वीर खींची गई जिसमें सुषमा जनार्दन रेड्डी और बीएस श्रीरामलु के सिर पर हाथ रखे हुए हैं, जैसे शादियों में आशीर्वाद दिया जाता है. रेड्डी बंधुओं ने तभी से सुषमा को थाई (माने मां) कहना शुरू किया. 1999 तक कांग्रेस बेल्लारी में एक भी चुनाव नहीं हारी थी. 1999 में भी नहीं हारी. लेकिन वो अमेठी से भी जीतीं और उन्होंने बेल्लारी सीट छोड़ दी. सोनिया के जाने के तुरंत बाद हुए चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस दोबारा आज तक बेल्लारी की लोकसभा सीट नहीं जीत पाई है. क्योंकि इलाके पर कब्ज़ा हो गया था भाजपा का. और भाजपा ने ये कब्ज़ा रेड्डी बंधुओं के कंधों पर चढ़कर ही किया था.

बेल्लारी में 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी का प्रचार पोस्टर. (फोटोःरॉयटर्स)
बेल्लारी में 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी का प्रचार पोस्टर. (फोटोःरॉयटर्स)

जब भाइयों ने ‘खाद’ देकर कमल खिला दिया

भाजपा और रेड्डी बंधुओं की दोस्ती का सबसे तगड़ा किस्सा 2008 में जाकर लिखा गया. भाजपा और येदियुरप्पा तब 110 सीटों पर अटक गए थे. सरकार बनाने के लिए तीन और विधायकों की ज़रूरत थी. तब रेड्डी बंधुओं को याद किया गया. रेड्डी बंधुओं ने अपना जादू चलाया और पांच निर्दलीय विधायकों को ‘जीत’ लिया. येदियुरप्पा की सरकार बन गई. लेकिन येदियुरप्पा और भाजपा चाहते थे कि सरकार बनाने लायक विधायक भाजपा के ही पास हों तो बेहतर रहेगा.

तब चलाया गया ‘ऑपरेशन लोटस’. इसके तहत भाजपा ने कांग्रेस से तीन और जनता दल (सेक्युलर) से चार विधायक तोड़ लिए. इन विधायकों ने सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. नतीजे में इन सभी सीटों पर उप-चुनाव हुए जिनमें ये सारे नेता बतौर भाजपा कैंडिडेट लड़े. इनमें से पांच जीत भी गए. तो भाजपा के पास अपने दम पर सदन में 115 विधायक हो गए. कर्नाटक में ये ओपन सीक्रेट है कि ऑपरेश लोटस में रेड्डी बंधुओं ने पानी की तरह पैसा बहाया था. अगले ही साल जनार्दन रेड्डी ने तिरुपति मंदिर में 45 करोड़ रुपए का हीरे जड़ा मुकुट चढ़ाया था.

करुणाकरा रेड्डी. भाजपा से पास-दूर होते रहे, लेकिन राजनीति से नहीं.
करुणाकरा रेड्डी. भाजपा से पास-दूर होते रहे, लेकिन राजनीति से नहीं.

रेड्डी-भाजपा-रेड्डी-भाजपा की साइकिल

ऐसा नहीं था कि रेड्डी बंधुओं ने भाजपा को सब दिया ही दिया. वो ‘एक हाथ से दे, एक हाथ से ले’ में विश्वास करते थे. कभी भाजपा भाइयों से फायदा उठाती, कभी भाई भाजपा से. ऑपरेशन लोटस के ज़रिए भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने के बाद रेड्डी बंधुओं ने अपने मंत्रालयों (पर्यटन और वित्त) में मनमाफिक अफसरों की नियुक्ति करनी चाही. यही नहीं, वो बेल्लारी ज़िले में भी ऐसे अफसरों की तैनाती चाहते थे, जो उनके काम में अड़ंगा न डालें. येदियुरप्पा ने ये सारी मांगें मानने से इनकार कर दिया.

फिर 2009 में येदियुरप्पा ने मांग की कि बेल्लारी से लौह अयस्क लेकर निकलने वाला हर ट्रक बाढ़ राहत के लिए 1000 रुपए की रसीद कटवाए. रेड्डी बंधुओं का धीरज जवाब दे गया. उन्होंने बगावत कर दी. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भाइयों को खोना नहीं चाहता था. तो येदियुरप्पा को अपनी ही सरकार से अपने पसंद के अफसरों को हटाना पड़ा. येदियुरप्पा कैबिनेट में अकेली महिला मंत्री शोभा करंडलगे को भी रेड्डी बंधुओं के दबाव में पद छोड़ना पड़ा.

सोमशेखर रेड्डी ने इस बार बेल्लारी शहर से पर्चा भरा है.
सोमशेखर रेड्डी ने इस बार बेल्लारी शहर से पर्चा भरा है.

रिपब्लिक ऑफ बेल्लारी

बेल्लारी में सुंदुरु रेंज नाम से पहाड़ों की एक श्रंखला है. पूरे के पूरे पहाड़ लौह अयस्क के बने हैं. बेशकीमती मिट्टी, जिसे पिघलाकर लोहा बनता है. अब लौह अयस्क बेल्लारी और आंध्रप्रदेश के ओबुलपुरम – दोनों ज़िलों में मिलता है. रेड्डी बंधु खनन का सारा कारोबार 2002 में शुरू की OMC के ज़रिए करते थे, माने ओबुलपुरम माइनिंग कंपनी. ओबुलपुरम आंध्रप्रदेश में है. लेकिन इसका हेडक्वार्टर बेल्लारी में है. कंफ्यूज़न यहीं खत्म नहीं होता. OMC के पास जितनी भी खदानों की अनुमति थी, वो सारी ओबुलपुरम में थीं. OMC के पास बेल्लारी में एक पत्थर भी खोदने की परमीशन नहीं थी. लेकिन OMC ने बेल्लारी में धड़ल्ले से अवैध उत्खनन किया. दोनों राज्यों के खनन विभागों को धोखा देने के लिए OMC ने ऐन सीमा पर से अयस्क निकाला. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की सरकारें इंच-टेप लेकर यही नापती रह गईं कि खुदाई हुई कहां है. OMC ने दो राज्यों की सीमा बताने वाले चिह्न तक मिटा दिए थे. खुदाई में 200 साल पुराना सुगलम्मा देवी मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों ज़िलों में खुदाई पर रोक लगा दी थी.

बेल्लारी में धड़ल्ले से अवैध उत्खनन हुआ है.
बेल्लारी में धड़ल्ले से अवैध उत्खनन हुआ है.

कहा जाता है कि बेल्लारी में काम करने वाला एक-एक अफसर रेड्डी बंधुओं के इशारे पर ही काम करता था. पूरे इलाके में कोई नहीं था जो भाइयों के खिलाफ बोल दे. दूसरी निजी खदानों के मालिकों की भी जान आफत में थी. इनमें से एक तपल गणेश ने जब भाइयों के खिलाफ आंध्रप्रदेश और कर्नाटक हाईकोर्ट में मुकदमे दर्ज कराए, उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने राज्य मानवाधिकार आयोग में जाकर फरियाद की. इसी तरह जब OMC के एक अफसर ने सीबीआई को गवाही देनी चाही तो उसका भी जीना हराम कर दिया गया. राज्य सरकार के सीनियर अफसर जब कार्रवाई करते, तो सरकार के मंत्री ही उनका तबादला करा देते. रेड्डी बंधुओं के प्रभाव के दिनों में बेल्लारी में पत्ता भी हिलने से पहले उनकी इजाज़त लेता था. उन दिनों कहा जाता था कि बेल्लारी एक अलग ही मुल्क है, जहां रेड्डी बंधुओं की हुकूमत चलती है.

कितना चूना लगाया इन्होंने?

रेड्डी बंधुओं ने बेल्लारी पर जो पकड़ बनाई, उसके दम पर उन्होंने जितना लौह अयस्क अवैध रूप से देश के बाहर भेजा, उससे सरकार को लगभग 35000 करोड़ का नुकसान हुआ. आयरन ओर की मात्रा इतनी थी कि इसे 4 राज्यों के 9 बंदरगाहों से बाहर भेजा गया था. दूसरे राज्यों में रेड्डी बंधुओं की पकड़ का अंदाज़ा ऐसे भी लगता है कि जनार्दन रेड्डी की कंपनी ब्राह्मनी इंडस्ट्रीज़ आंध्रप्रदेश में दक्षिण भारत का सबसे बड़ा स्टील प्लांट बना रही है. ये कडप्पा में बन रहा है. कडप्पा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वाईएस राजशेखर रेड्डी की पकड़ वाला इलाका है. कहा जाता है कि रेड्डी बंधू और राजशेखर के परिवार में कारोबारी संबंध हैं.

रेड्डी बंधुओं के साथ-साथ येदियुरप्पा के करियर पर भी बट्टा लग गया था.
रेड्डी बंधुओं के साथ-साथ येदियुरप्पा के करियर पर भी बट्टा लग गया था.

और फिर इनके अच्छे दिन बीत गए

कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में रेड्डी बंधुओं के खिलाफ मामले बहुत धीमे चले, लेकिन बंद नहीं हुए. 2009 में कर्नाटक में अवैध खनन के मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. साल 2011 में कर्नाटक के लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट पेश की. इसी जांच में ये मालूम चला कि न आयरन ओर की खुदाई करने वालों के पास माइनिंग पर्मिट था, न आयरन ओर की ढुलाई करने वालों के पास ट्रांसपोर्ट पर्मिट था और न ही ओर का निर्यात करने वालों के पास एक्सपोर्ट पर्मिट था. ये सही मायनों में गोरखधंधा था. रिपोर्ट में जी जनार्दन रेड्डी की कंपनियों का सीधा नाम लेकर उन्हें अवैध ओर निर्यात में शामिल बताया गया.

जब येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते सीएम पद छोड़ना पड़ा, तो रेड्डी बंधुओं के मंत्रीपद भी जाते रहे. 2009 में सीबीआई द्वारा इस मामले में पहली एफआईआर दर्ज किए जाने के पूरे 21 महीने बाद 2011 में जनार्दन रेड्डी गिरफ्तार हुए. सबूत छुपाने के लिए इतना समय मिलने के बावजूद उनके घर से 30 किलो से ज़्यादा सोना और 1.5 करोड़ से ज़्यादा का कैश बरामद हुआ. जनार्दन रेड्डी की गिरफ्तारी से कुछ ही वक्त पहले उनके बहनोइ बी.वी श्रीनिवास रेड्डी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन ये गिरफ्तार होकर भी नहीं माने सोमशेखर रेड्डी पर बेल के लिए जज को घूस देने का इल्ज़ाम लगा था. इस कांड को कैश फॉर बेल कांड कहा गया था.

जनार्दन रेड्डी के खिलाफ छिटपुट कार्रवाई होती रही लेकिन उनकी किस्मत ने 2011 से पहले कभी दगा नहीं दिया. (फोटोःपीटीआई)
जनार्दन रेड्डी के खिलाफ छिटपुट कार्रवाई होती रही लेकिन उनकी किस्मत ने 2011 से पहले कभी दगा नहीं दिया. (फोटोःपीटीआई)

भाजपा से बाहर, फिर भाजपा के अंदर

2011-12 में येदियुरप्पा ने भी भाजपा छोड़ी और रेड्डी बंधुओं ने भी. येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पक्ष नाम से पार्टी बनाई और बी श्रीरामलु ने बीएसआर कांग्रेस. दोनों ने 2013 में जितना ज़ोर खुद जीतने पर नहीं दिया, उतना भाजपा को हराने पर दिया. लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ. 2018 के चुनाव आते-आते येदियुरप्पा भी भाजपा में वापस आ गए. रेड्डी बंधुओं के खिलाफ चल रहे केस भी धीरे-धीरे धीमे पड़ गए और चुनाव आते-आते सीबीआई ने एक-एक करके ‘तकनीकी कारणों’ से केस बंद करने शुरू कर दिए. चुनाव से पहले भाजपा ने कह दिया कि बेल्लारी में रेड्डी एंड कंपनी के बिना चुनाव लड़ना संभव नहीं है और चुनाव जीतना उनके लिए बेहद ज़रूरी है. तो रेड्डी बंधुओं को सात सीटें दी गईं. बेल्लारी, रायचूर और चित्रदुर्ग की 22 सीटों का इंचार्ज भी बनाया गया.

बी श्रीरामलु को चौथा रेड्डी ब्रदर कहा जाता है.
बी श्रीरामलु को चौथा रेड्डी ब्रदर कहा जाता है.

भाजपा इनके साथ गई क्यों?

सबसे बड़ी वजह है पैसा. रेड्डी कर्नाटक भाजपा के मनीबैग हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनिंदा विधानसभाओं में कैंडिडेट जिताने के लिए वो एक-एक वोटर को 500 से 2000 रुपए तक दे देते हैं. और ये पिछले चुनाव का आंकड़ा है. दूसरी वजह ये है कि जब रेड्डी ब्रदर्स के अच्छे दिन थे, तब ये अवैध खदानें मुनाफा कमाने का अच्छा साधन थीं और इनमें हज़ारों मज़दूरों को रोज़गार मिला हुआ था. इससे रेड्डी बंधुओं की धाक इलाके पर जम गई थी. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद बेल्लारी में अवैध उत्खनन पर रोक लग गई. कुल 99 खदानें बंद कर दी गईं जिनमें से सिर्फ 26 ही वैध दस्तावेज़ों के साथ दोबारा खुल पाईं. इस वजह से इलाके में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां कम हुई हैं. तो भाइयों की धाक के अलावा भाजपा के पास वोट बटोरने का कोई दूसरा भरोसेमंद साधन नहीं है. फिर रेड्डी बंधुओं का ‘मैनेजमेंट’ भी है, जो वो अपने स्तर पर कर लेते हैं. भाजपा को लगता है कि इसकी मदद पार्टी को हैदराबाद कर्नाटक और मध्य कर्नाटक में मिलेगी.

रेड्डी बेल्लारी नहीं जा सकते तो बेल्लारी उनके दरवाज़े आता है

जनार्दन रेड्डी को अवैध उत्खनन मामले में तीन साल तक जेल में रहने के बाद बेल इस शर्त पर दी गई थी कि वो बेल्लारी में नहीं घुसेंगे. तो उन्होंने बेल्लारी की सीमा के पास चित्रदुर्ग ज़िले में मोलकलमुरु में एक फार्महाउस किराए पर ले रखा है. यहीं से इस बार पूरे इलाके में भाजपा का कैंपेन चला. जगन के बेल्लारी में घुसने पर रोक है. लेकिन उनका रसूख ये है कि मोलकलमुरु के फार्महाउस पर पूरा बेल्लारी खुद चलकर आता है. भाइयों के मीडिया फेस जनार्दन रेड्डी ने इस बार मीडिया से बात कम की है. कहते रहे कि 7 साल तक मैंने बहुत सहा है. पार्टी ने मुझे बयान देने से मना किया है. मैं आपसे चुनाव बाद बात करूंगा.

क्या हुआ उन सात सीटों का जहां रेड्डी बंधुओं की चली?

#1. बेल्लारी शहर
कैंडिडेट – भाजपा से गली सोमशेखर रेड्डी, कांग्रेस से अनिल लाड
रुझान – सोमशेखर रेड्डी 76589 वोट पाकर जीत गए हैं. अनिल लाड को 60434 वोट मिले.

#2. मोलकलमुरु
कैंडिडेट- बी श्रीरामलु, कांग्रेस से बी योगेश बाबू
रुझान- श्रीरामलु 84018 वोट पाकर बी योगेश बाबू से लगभग 40 हज़ार वोट आगे हैं. निर्णायक बढ़त.

#3. हरपनहल्ली
कैंडिडेट- जी करुणाकर रेड्डी, कांग्रेस से एमपी रवींद्र
रुझान – जी करुणाकर रेड्डी 67603 वोट पाकर जीत गए हैं. एमपी रविंद्र को 57,956 वोट मिले.

#4. कंपली
कैंडिडेट – टीएच सुरेश बाबू (श्रीरामलु के भतीजे हैं), कांग्रेस से जीएन गणेश
रुझान- कांग्रेस के जी एन गणेश 80592 वोट पाकर जीत गए हैं. टीएस सुरेश 75037 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे.

#5. बेल्लारी (ग्रामीण)
कैंडिडेट- भाजपा से सन्ना फकीरप्पा,  कांग्रेस से बी नागेंद्र
रुझान- बी नागेंद्र 79186 वोट पाकर जीत गए हैं. फकीरप्पा 76,507 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे.

#6. कुदलिगि
कैंडिडेट- भाजपा से एन.वाय. गोपालकृष्ण, जेडीएस से एन.टी. बोमन्ना
रुझान- एन.वाय गोपालकृष्ण 50085 वोट पाकर जीत गए हैं. एन.टी. बोमन्ना को 39,272 वोट मिले.

#7. बीटीएम लेआउट सेगमेंट (बेंगलुरु)
कैंडिडेट- लल्लेश रेड्डी (रेड्डी बंधुओं के भांजे हैं), कांग्रेस से रामलिंगा रेड्डी
रुझान- कांग्रेस के रामालिंगा रेड्डी 67085 वोट पाकर जीत गए हैं. लल्लेश रेड्डी को 46,607 वोट मिले.

Leave a Reply