क्या हैं पैंगोंग लेक की फिंगर्स, जिन्हें लेकर हुई भारत-चीन में इस बार भिड़ंत

भारत और चीन के बीच पिछले कुछ महीनों से लद्दाख इलाके में तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. 31 अगस्त यानी सोमवार को एक बार फिर पैंगोंग झील के पास चीनी घुसपैठ को भारतीय जवानों ने रोका. चीन बार-बार भारतीय फिंगर-4 पर अपना दावा जताता है. उसपर कब्जा करना चाहता है लेकिन भारतीय फौज के जवान उसे उल्टे मुंह वापस भेज देते हैं. इस बीच चर्चा हो रही है फिंगर 4 और फिंगर 8 की. आखिर ये फिंगर्स क्या हैं. आइए जानते हैं

पिछले कुछ सालों से चीन की सेना पैंगोंग झील के किनारे सड़कें बना रही है. 1999 में जब कारगिल की जंग जारी थी तो उस समय चीन ने मौके का फायदा उठाते हुए भारत की सीमा में झील के किनारे पर 5 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई थी. झील के उत्‍तरी किनारे पर बंजर पहाड़ियां हैं. इन्हें स्थानीय भाषा में छांग छेनमो कहते हैं. इन पहाड़ियों के उभरे हुए हिस्‍से को ही सेना ‘फिंगर्स’ बुलाती है. भारत का दावा है कि एलएसी की सीमा फिंगर 8 तक है. लेकिन वह फिंगर 4 तक को ही नियंत्रित करती है.

फिंगर 8 पर चीन का पोस्ट है. वहीं, चीन की सेना का मानना है कि फिंगर 2 तक एलएसी है. छह साल पहले चीन की सेना ने फिंगर 4 पर स्‍थाई निर्माण की कोशिश की थी, लेकिन भारत के विरोध पर इसे गिरा दिया गया था. फिंगर 2 पर पेट्रोलिंग के लिए चीन की सेना हल्‍के वाहनों का उपयोग करती है. गश्‍त के दौरान अगर भारत की पेट्रोलिंग टीम से उनका आमना-सामना होता है तो उन्‍हें वापस जाने को कह दिया जाता है. क्योंकि दोनों देश पैट्रोलिंग गाड़ियां उस जगह पर घुमा नहीं सकते. इसलिए गाड़ी को वापस जाना होता है. 

भारतीय सेना के जवान पैदल गश्ती भी करते हैं. अभी के तनाव को देखते हुए इस गश्ती को बढ़ाकर फिंगर 8 तक कर दिया गया है. मई में भारत और चीन के सैनिकों के बीच फिंगर 5 के इलाके में झगड़ा हुआ है. इसकी वजह से दोनों पक्षों में असहमति है. चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को फिंगर 2 से आगे बढ़ने से रोक दिया था. बताया जाता है कि चीन के 5,000 जवान गलवान घाटी में मौजूद हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत होती है पैंगोंग लेक के आसपास. यहीं पर कई बाद दोनों देशों के जवानों के बीच भिड़ंत हो चुकी है. 

एलएसी तीन सेक्‍टर्स में बंटी है. पहला अरुणाचल प्रदेश से लेकर सिक्किम तक. दूसरा, हिमाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड का हिस्‍सा. तीसरा है लद्दाख. भारत, चीन के साथ लगी एलएसी करीब 3,488 किलोमीटर पर अपना दावा जताता है, जबकि चीन का कहना है यह बस 2000 किलोमीटर तक ही है. एलएसी दोनों देशों के बीच वह रेखा है जो दोनों देशों की सीमाओं को अलग-अलग करती है. दोनों देशों की सेनाएं एलएसी पर अपने-अपने हिस्‍से में लगातार गश्‍त करती रहती हैं. पैंगोंग झील पर अक्सर झड़प होती है. 6 मई को पहले यहीं पर चीन और भारत के जवान भिड़े थे. झील का 45 किलोमीटर का पश्चिमी हिस्‍सा भारत के नियंत्रण में आता है जबकि बाकी चीन के हिस्‍से में है. 

पूर्वी लद्दाख एलएसी के पश्चिमी सेक्‍टर का निर्माण करता है जो कि काराकोरम पास से लेकर लद्दाख तक आता है. उत्‍तर में काराकोरम पास जो 18 किमी लंबा है. यहीं पर देश की सबसे ऊंची एयरफील्‍ड दौलत बेग ओल्‍डी है. अब काराकोरम सड़क के रास्‍ते दौलत बेग ओल्‍डी से जुड़ा है. दक्षिण में चुमार है जो पूरी तरह से हिमाचल प्रदेश से जुड़ा है. पैंगोंग झील, पूर्वी लद्दाख में 826 किलोमीटर के बॉर्डर के केंद्र के एकदम करीब है. 19 अगस्‍त 2017 को भी पैंगोंग झील पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी. 

पैंगोंग का मतलब लद्दाखी भाषा में होता है गहरा संपर्क और त्‍सो एक तिब्‍बती शब्‍द है जिसका अर्थ है झील. यह झील हिमालय में 14,000 फीट से भी ज्‍यादा की ऊंचाई पर है.  झील लेह से दक्षिण पूर्व में करीब 54 किलोमीटर की दूरी पर है. 135 किलोमीटर लंबी झील करीब 604 स्‍क्‍वॉयर किलोमीटर से ज्‍यादा के दायरे में फैली है. सर्दियों में पूरी तरह से जम जाने वाली झील के बारे में कहते हैं कि 19वीं सदी में डोगरा साम्राज्‍य के जनरल जोरावर सिंह ने अपने सैनिकों और घोड़ों को जमी हुई झील पर ट्रेनिंग दी थी. इसके बाद वह तिब्‍बत में दाखिल हुए थे. 

इस झील का ज्‍यादा रणनीतिक महत्‍व नहीं है. लेकिन यह चुशुल के रास्‍ते में पड़ती है और यह रास्‍ता चीन की तरफ जाता है. किसी भी आक्रमण के समय चीन इसी रास्‍ते की मदद से भारत की सीमा में दाखिल हो सकता है. 1962 की जंग में चीन ने इसी रास्‍ते का प्रयोग कर हमले शुरू किए थे. भारत की सेना ने उस समय रेजांग ला पास पर बहादुरी से चीन का जवाब दिया था. चुशुल में तब 13कुमायूं बटालियन तैनात थी, जिसकी अगुवाई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. 

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