विश्व का एकमात्र स्कूल जिसने ध्यान को अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया

इस दुनिया में जो लोग बना नहीं सकते,
वे मिटाने में लग जाते है,
जो कविता नहीं रच सकते, वे आलोचक हो जाते है।
जो धर्म का अनुभव नहीं कर सकते, वे नास्तिक हो जाते है।
जो ईश्‍वर की खोज नहीं कर सकते, वे कहते है—ईश्‍वर है ही नहीं।
अंगूर खट्टे है,
इनकार करना आसान है, स्‍वीकार करना कठिन।
जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते है—समर्पित होए क्यों।
मनुष्‍य की गरिमा उसके संकल्‍प में है, समर्पण में नहीं।
जो समर्पित नहीं हो सकते, वे कहते है–,
कायर समर्पित होते है, बहादुर, वीर तो लड़ते है।
ध्‍यान रखान, सृजन कठिन है, विध्‍वंस आसान है।
जो माइकलएंजलो नहीं हो सकता।
वह अडोल्‍फ हिटलर हो सकता है।
जो कालिदास नहीं हो सकता,
वह जौसेफ़ स्‍टैलिन हो सकता है।
जो बानगाग नहीं हो सकता, वह माओत्‍से तुंग हो सकता है।
विध्‍वंस आसान है।
ओशो

अपने प्रसिद्ध प्रवचन शिक्षा के सूत्र में ओशो नए सृजन को अतिशय महत्व दिया है प्रसंग वश विवेकानंद विजडम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ओशो की देशना पर आधारित विश्व का एकमात्र स्कूल है जिसने ध्यान को अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया है। प्रकृति की हरियाली से आच्छादित मां नर्मदा के किनारे स्थित स्कूल में टीचर श्रीमती सुषमा अवस्थी बच्चों के साथ सृजन के अंतरंग क्षणों को व्यतीत कर रही हैं और बच्चे उनसे सीख रहे हैं पेंटिंग बनाना क्राफ्ट बनाना अनुपयोगी वस्तुओं से कलात्मक चीजें बनाना

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