अब चोकसी के खिलाफ कार्रवाई के लिए भारत को लेनी होगी एंटीगुआ की इजाजत

विदेश भाग गए आर्थिक अपराधियों पर शिकंजा कसने के सरकारी दावे चाहे जो हों, लेकिन अगर चोकसी ने यह कदम उठाया है तो उसका मकसद खुद को और सुरक्षित बनाना ही है। दरअसल, एंटीगुआ और भारत के बीच अभी तक कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इसलिए उसकी वापसी संदेह के घेरे में है।

देश के बैंकों से भारी रकम बतौर कर्ज लेकर उसे डुबोने या विदेश भाग जाने वाले कारोबारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के सरकार के दावे जमीनी हकीकत से दूर लगते हैं। यह समझना मुश्किल है कि सार्वजनिक रूप से ऐसे भगोड़ों पर अंकुश लगाने के बयान कार्रवाई के स्तर पर उतने ही प्रभावी क्यों नहीं हो पाते! इसका ताजा उदाहरण यह है कि सरकार पिछले कुछ समय से लगातार देश का पैसा लेकर विदेश भागने वालों को नहीं छोड़ने की बात कर रही थी, दूसरी ओर सोमवार को खबर आई कि पंजाब नेशनल बैंक में लगभग चौदह हजार करोड़ रुपए के घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी ने तकनीकी रूप से भी भारत की नागरिकता छोड़ दी। हालांकि उसने 2017 में ही कर-चोरी के एक बड़े ठिकाने वाले देश एंटीगुआ की नागरिकता ले ली थी। इसके बाद भी सरकार यह दावा करती रही कि चूंकि उसके पास दोहरी नागरिकता है, इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब मेहुल चोकसी ने पासपोर्ट समर्पित करने के बाद भारत की नागरिकता का त्याग करने की औपचारिकता भी पूरी कर ली। यों सरकार का अब भी यही कहना है कि नागरिकता छोड़ने से भी चोकसी नहीं बचेगा और सभी भगोड़े भारत लाए जाएंगे। लेकिन सच यह है कि भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून के तहत कार्रवाई के दावे के बावजूद देश के बैंकों से हजारों करोड़ लेकर विदेश भागे लोगों पर कार्रवाई का रिकॉर्ड बहुत संतोषजनक नहीं है।

विदेश भाग गए आर्थिक अपराधियों पर शिकंजा कसने के सरकारी दावे चाहे जो हों, लेकिन अगर चोकसी ने यह कदम उठाया है तो उसका मकसद खुद को और सुरक्षित बनाना ही है। दरअसल, एंटीगुआ और भारत के बीच अभी तक कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इसलिए उसकी वापसी संदेह के घेरे में है। अब वह चूंकि विदेशी नागरिक है, इसलिए मौजूदा नियमों के तहत उसके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले भारत को एंटीगुआ की इजाजत की जरूरत पड़ेगी। यही नहीं, अब अगर किन्हीं स्थितियों में चोकसी को कानूनी कार्रवाई के लिए भारत लाया भी जाता है तो उसे विदेशी नागरिक की हैसियत से लाना होगा। किसी आपराधिक मामले में एक भारतीय नागरिक को भी पकड़ कर विदेश से वापस लाने की कानूनी प्रक्रिया जटिल है। इसके मुकाबले किसी विदेशी को भारत लाने की प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल है। यानी अगर भारत सरकार ईमानदारी से मेहुल चोकसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना चाहती है तो भी अब इसमें काफी देरी हो सकती है।

सवाल यह है कि हजारों करोड़ की रकम का घोटाला होता रहा और बैंकों से लेकर सरकारी तंत्र और संबंधित महकमों तक को भनक क्यों नहीं लगी या फिर अगर इसकी अनदेखी की गई तो इसकी वजह क्या थी? दूसरे, मेहुल चोकसी, विजय माल्या या नीरव मोदी जैसे कई कारोबारी इतनी बड़ी रकम डुबोने के बाद कैसे आसानी से विदेश भाग गए! देश से बाहर जाने वाले व्यक्ति की जांच-पड़ताल का जो स्तर होता है, उसमें बिना किसी योजना या मिलीभगत के इन सबका भागना इतना आसान नहीं था। यह तथ्य है कि मेहुल चोकसी को एंटीगुआ की नागरिकता मिल सकी तो उसमें मुंबई के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के पुलिस के प्रमाण-पत्र का भी योगदान है। आज मेहुल चोकसी या देश का पैसा लेकर विदेश फरार हो गए बाकी लोगों को लेकर अगर सरकार को फजीहत झेलनी पड़ रही है या उन्हें वापस लाने का भरोसा देना पड़ रहा है तो इसके पीछे खुद सरकार की लापरवाही या ऐसे लोगों को मिला संरक्षण है। अगर समय रहते इनके खिलाफ सख्ती बरती गई होती तो आज न केवल ये गिरफ्त में होते, बल्कि देश को हजारों करोड़ का नुकसान नहीं उठाने की नौबत आती।

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