मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर नहीं, ज्यादा ताकतवर बन गए हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया

राहुल गांधी ने सिंधिया को प्रभार सौंपते वक्त घोषणा की है कि यह सिर्फ लोकसभा चुनाव तक दो महीने के लिए दिया गया प्रभार नहीं है. दरअसल कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर है. कांग्रेस के पास डेढ़ साल का समय है और वह अपने जुझारू नेताओं के साथ यूपी में अपनी ताकत खड़ी करना चाहती है.

यह एक राजनीतिक वहम हो सकता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया यूपी के प्रभार के साथ ही मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर हो गए हैं. या उन्हें एक तरह से अलग- थलग कर दिया गया है. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. सिंधिया पहले से ज्यादा ताकतवर हो चुके हैं. वे अब मध्यप्रदेश ही नहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में भी पहली पंक्ति के नेता बन गए हैं. मध्यप्रदेश में भले ही कमलनाथ मुख्यमंत्री हों, दिग्विजय सिंह समानांतर पावर में हों, लेकिन सिंधिया की दखल वैसी ही बनी रहेगी. उन्हें दरकिनार कर कोई भी फैसला होना संभव नहीं है.

भविष्य के नेता

सिर्फ डेढ़ महीने पहले की घटना को याद कीजिए. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया था- दो सबसे शक्तिशाली योद्धा हैं, समय और धैर्य. और एक बेहतरीन तस्वीर को साझा किया था. इसके बाद ही सिंधिया मध्यप्रदेश के सीएम पद की रेस से बाहर हो गए थे. अब उसी धैर्य और समय के साथ सिंधिया कांग्रेस महासचिव बन गए हैं. वे उस पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमान संभालेंगे जहां कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण हालात हैं. प्रियंका गांधी के साथ सिंधिया को यूपी में प्रभार देकर राहुल ने जता दिया है कि सिंधिया न सिर्फ उनके सबसे करीबी हैं बल्कि भविष्य के नेता भी हैं.

भीड़ खींचने वाले नेता

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सिंधिया की इस बढ़े हुए कद की इबारत मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव ने लिखी है. चुनावी कैंपेन को संभालते हुए जिस उर्जा और करिश्मे के साथ उन्होंने 115 से ज्यादा रैलियां की, उसने मध्यप्रदेश की चुनावी फिजां को बदल कर रख दिया. वे भीड़ खींचने वाले उस नेता की तरह उभरे जिसकी मास अपील है. वे चुटीले अंदाज में शिवराज पर सीधा अटैक कर रहे थे. बहुत दिलचस्प तरीके से कहानियां सुनाते हुए शिवराज के महाराजी वाले किस्से बयां कर रहे थे. खुद को पसीना बहाने वाला सामान्य व्यक्ति बताते हुए कह रहे थे कि उनका चंबल का पानी है, जो 47 डिग्री तापमान में भी एसी नहीं चलाता.

ऊर्जावान नेतृत्व

ऐसे ही जूनूनी और ताकत भरने वाले भाषणों की जरूरत अब यूपी में है. दिल्ली की सत्ता का दरवाजा लखनऊ से गुजरता है. यहां की 80 सीटें देश की राजनीति का भविष्य तय करती है. कांग्रेस के पास सिंधिया से बेहतर कोई विकल्प नहीं है, जिसकी हिंदी पर बेहतर पकड़ हो और करिश्माई अंदाज हो. सिंधिया यूपी में कांग्रेस की खोई हुई ताकत को जगा सकते हैं. प्रियंका और सिंधिया की घोषणा के बाद ही जो उत्साह दिखाई दे रहा है वह इस बात को साबित कर रहा है कि राहुल ने दो बड़े दांव खेल दिए हैं.

नजर यूपी चुनाव पर

मध्यप्रदेश में सिंधिया की अपनी राजनीतिक जमीन है. वे चुनाव भी अपने क्षेत्र गुना से लड़ेंगे. इसकी घोषणा वे कर चुके हैं. राहुल गांधी ने सिंधिया को प्रभार सौंपते वक्त घोषणा की है कि यह सिर्फ लोकसभा चुनाव तक दो महीने के लिए दिया गया प्रभार नहीं है. दरअसल कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर है. कांग्रेस के पास डेढ़ साल का समय है और वह अपने जुझारू नेताओं के साथ यूपी में अपनी ताकत खड़ी करना चाहती है.

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