ये ओशो की प्रेम नगरिया यहां संभलकर आना जी : डॉ प्रशांत कौरव

जबलपुर। आजादी के बाद से लेकर आज तक जबलपुर को किसी न किसी वजह से उसके हिस्से का प प्रतिसाद मिल नहीं पाया कुछ अजीब सी राजनीतिक विडंबना में फंसा रहा हमारा अपना शहर जबलपुर ….

प्रकृति ने अपनी पूरी दौलत यहां पर लुटाई है मां नर्मदा का आंचल यहां पर लहराता है खनिज अपरंपार है घने जंगल है राजनीतिक प्रतिभाएं भी यहां से बहुत सारी निकली मगर कहीं ना कहीं एक रिक्तता एक कमी एक खालीपन बना रहा जब हम सुनते हैं कि एक आध्यात्मिक विभूति के रूप में आचार्य रजनीश ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया और पूरी दुनिया में अपने विशाल अनुयायियों को तैयार किया पूरी दुनिया को शांति से और प्रेम से रहने का संदेश ध्यान के रूप में दिया जो अक्सर हम एक अदृश्य दीवार से टकरा जाते हैं वह अदृश्य दीवाल है ओशो के संबंध में प्रचलित धारणाओं की मान्यताओं की उस परसेप्शन की जिसमें सेक्स के आगे बात बढ़ नहीं पाती जबकि हम जानते हैं कि ओशो विश्व के एकमात्र ऐसे गुरु हैं जैसा कि मुरारी बापू ने भी कहा है जो काम से राम की ओर जाने का रास्ता हमें देते हैं बहरहाल ओशो की स्वीकृति सर्व मान्यता को लेकर बहुत सारी बातें हैं और बहुत सारी बातों पर बहस हो सकती है कुछ लोग सहमत भी हो सकते हैं कुछ लोग सहमत भी हो सकते हैं मगर इधर आज हमेशा लेख में जो बात कर रहे हैं वह मसला कुछ दूसरा है ।

जब से नई राज्य सरकार आई है जबलपुर को उसका गौरव लौटाने के प्रयास तो चल रहे हैं इसमें कोई शक नहीं है पहले कैबिनेट की बैठक हुई और 2 कैबिनेट मंत्रियों से शहर को नवाजा गया अभी हाल में ओशो महोत्सव के रूप में एक बहुत ही महत्वाकांक्षी घोषणा राज्य सरकार ने की है जिस घोषणा ने पूरी दुनिया का ध्यान जबलपुर की ओर खींचा है आलोचना से परे हटकर यदि हम जबलपुर में पर्यटन की संभावना को अपना लक्ष्य मानते हो तो यह कहना गलत नहीं होगा कि ओशो महोत्सव जबलपुर को बहुत लाभ देने वाला है कहां की होटल इंडस्ट्री को यहां के लॉजिस्टिक को उस पर भी चर्चा फिर कभी..

अभी बात यह है कि मां पूर्णिमा के प्रयास से अनहद कम्यून भोपाल और ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन की स योजना में अध्यात्म विभाग मध्यप्रदेश शासन मध्य प्रदेश टूरिज्म काउंसिल और जिला प्रशासन के सहयोग से दिनांक 11 एवं 13 दिसंबर को ओशो महोत्सव आयोजित किया जा रहा है जिसमें बहुरंगी आयोजन किए जा रहे हैं प्रसिद्ध विचारक एवम वक्ता आ रहे हैं प्रसिद्ध संगीतकार आ रहे हैं फिल्मी दुनिया से जुड़े हुए लोग आ रहे हैं शास्त्रीय नृत्य हो रहा है गीत संगीत है आचार्य रजनीश पर आधारित विश्व का पहला नाटक भी रिहर्सल में है जिसे स्थानीय सन्यासी देव सिद्धार्थ ने लिखा है सुभाष घई ऐसी कुछ अनसीन फिल्मों का फेस्टिवल भी आयोजित कर रहे हैं जो पहले नहीं देखी गई कुल मिलाकर मामला बड़ा रोचक है कार्यक्रम का फॉर्मेट हालांकि तीन दिवसीय है लेकिन इसी महोत्सव की निरंतरता में दिनांक 14 दिसंबर को ओशो ट्रेल भी आयोजित की जा रहे हैं जिसकी शुरुआत ओशो की देशना पर आधारित विश्व के पहले स्कूल विवेकानंद विजडम इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल ने 3 साल पहले की थी ।जिसमें आचार्य रजनीश से संबंधित विभिन्न स्थानों पर ओशो प्रेमियों को भ्रमण कराया जाएगा उस बोधि वृक्ष तक ले जाया जाएगा उस योगेश भवन तक ले जाया जाएगा उस महाकौशल कॉलेज तक ले जाया जाएगा और बात उसको जगत की है तो उत्सव आनंद तो निरंतर चलेगा ही ऐसा लगता है कि अगले कुछ दिनों तक गूगल पर जबलपुर ज्यादा सर्च किया जाएगा आमीन

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